श्री हनुमान जयंती
हनुमान जयंती
रचना गौड़
श्री हनुमान जयंती चैत्र की पूर्णिमा को मनाई जाती है. इस दिन सेवा धर्म के मूर्तिमान प्रतीक श्री हनुमान जी का जन्म वानर जाति में हुआ था. हनुमान जी वानर रूप में साक्षात् शंकर भगवान के अवतार थे, जिनकी माता का नाम अंजना और पिता केसरी थे. बजरंगबली का यह वानर रूप शंकर का अवतार एक जीवन का व्रत था जो राम जी की सेवा के लिए लिया गया था. उनकी राम भक्ति व सेवा के कारण भारतीय संस्कृति का प्रत्येक भक्त उनकी पूजा करता है. संगत के असर की महिमा यूं तो विश्व विख्यात है वैसे ही श्रीराम के पावन चरित्र के समान इनका भी चरित्र अत्यंत ऊंचा व पवित्र था. ज्ञानियों में अग्रगण्य होने के साथ ही इन्हें वीरता के लिए भी जाना जाता है, तभी वीर हनुमान के नाम से पुकारे जाते हैं.
राम भक्ति की एक मार्मिक कथा बताती है कि लंका जीतने के बाद अवध में राम के पर्दापण करने पर उनका राज्याभिषेक हुआ. उस समय महारानी सीता ने उनकी सेवाओं से प्रसन्न होकर एक बहुमूल्य मणियों का हार पारितोषिक के रूप में उन्हें प्रदान किया. लेकिन हनुमान जी की भक्ति अनुपम थी. वे चमकते हुए रत्नहार की मणियों के दानों को दाँत से तोड़-तोड़ कर देखने लगे. ये बात राम जी के अनुज लक्ष्मण जी को बुरी लगी. उन्होंने सोचा ये वानर क्या समझेगा मणियों का मूल्य, इसके लिए क्या महत्व इनका. यह सोचते हुए बीच में वे पूछ बैठे -”हनुमान यह क्या कर रहे हो ?” हनुमान जी ने तुरंत नि:शंक होकर कहा – “मैंने सुना है मेरे प्रभु श्रीराम सब में समाये हुए हैं, इसलिए यह परीक्षा कर रहा था कि इन चमकीले पत्थरों में वो कहां छिपे बैठे हैं.”
हनुमान जी की भक्ति अपरम्पार थी. अत: उन्होंने अपने नाखूनों से अपना ह्रदय चीरकर दिखा दिया और उसमें विराजमान श्रीराम व जानकी जी के दर्शन उन्हें करा दिए. उन्हीं भक्ति शिरोमणि श्री महावीर जी का जन्मोत्सव इस दिन प्रत्येक आस्तिक के घर में मनाया जाता है. बलवान की उपाधियुक्त हनुमानजी को भारतीय संस्कृति में बल का प्रतीक माना गया है. उनमे सब प्रकार के बलों का विकास हुआ था :-
मनोजवं मरुत: तुल्य वेगं
जितेन्द्रियं बुद्विमतां वरिष्ठं
वातात्मजं वानर यूथ मुख्यं
श्रीराम दूत शरणं प्रपथं
हनुमान जी शारीरिक बल में पूर्ण होने के साथ-साथ मन की तरह चंचल और उनका वेग वायु के समान तेज था. शारीरिक सौष्ठव में विलक्षण पुरुष, शरीर वज्र के समान कठोर और मन पुष्प की भांति कोमल व निर्मल था. उनके बल में इतनी शक्ति थी कि बड़े-बड़े पर्वतों को अपने चरण के प्रहार मात्र से चूर्ण कर सकते थे और बड़ी से बड़ी चट्टान को लेकर आकाश में उड़ सकते थे.
बजरंगबली की विशेषताओं में शारीरिक शक्ति एक नहीं थी बल्कि वे अपार मनोबल वाले, जितेन्द्रिय, संयमी, शीलवान, सचरित्र और व्रती भी थे. उन्होंने अपनी शक्ति कभी अपव्यय नहीं की. वासनाओं पर विजयी होकर बुद्विमानों में वरिष्ठ व श्रेष्ठ थे. लोगों का मानना है कि जो व्यक्ति शक्तिशाली होता है, वे बुद्वि में कम और जो बुद्विमान होता है वे शक्ति से कम होता है मगर इनमें ये अपवाद देखा जा सका कि इनमें दोनों का संगम पाया गया. शरीर, ह्रदय और बुद्वि तीनों को बलवान बनाने के लिए संगठन की कुशलता जरूरी होती है और ये कुशलता भी इन्हें प्राप्त थी. स्वयं अच्छा बनना एक गुण है लेकिन दूसरों को अच्छा बनाने की योग्यता रखना उससे भी बड़ा गुण है और ये भी बजरंगबली में मौजूद था.
वानर दल के प्रधान सभी को बड़े – बड़े कामों को करने की प्रेरणा देते थे. इसलिए समाज इनकी पूजा आज तक करता है. आज भी लोग अपनी भक्ति के द्वारा उनसे प्रेरणा, बल व शक्ति आदि मांगते हैं और अपने कार्य सिद्व करते हैं.